बोरोलीन"
पिछले कुछ सालों से हमारे देश में आत्मनिर्भरता को अधिक महत्व दिया
जाता है। "वोकल फोर लोकल" और "मेइड इन इंडिया" जैसे
काॅन्सेप्ट हमारे देश में बहुत ही ट्रेडिंग है। पिछले दो सालों से यानी कोरोना
महामारी की चपेट में आने के बाद आत्मनिर्भरता का सही अर्थ देशवासियों को समज में
आया है। इस से पहले हम अपनी ही दुनिया में मगन होकर अंधी दौड़ लगा रहे थे। वैसे
आपको बता दें कि आत्मनिर्भरता या, "वोकल फोर लोकल" और म"मेइड इन
इंडिया" जैसे काॅन्सेप्ट हमारे देश के लिए कोई नए आविष्कार नहीं है बल्कि इन
सभी बातों को हमारे बड़े बुजुर्ग भी अंग्रेजों के वक्त से सुनते आ रहे हैं।
आत्मनिर्भरता का इतिहास
जब हमारा देश अंग्रेजों की गुलामी में कैद था उस वक्त हमारे देश कुछ
छोटी बड़ी कंपनिज ने लधु उधोग या फिर किसी अन्य प्रकार के बिजनेस शुरू कर देश को
आत्मनिर्भर बनाने की नींव रखी थी। वैसे तो बहुत सारी कंपनियों और व्यवसायों की
शुरुआत उस दौर में हुई थी लेकिन जिस व्यवसाय वह कंपनी का दबदबा आज भी बरकरार है वह
है " बोरोलीन"। तो हम आज इस कंपनी के देश को आत्मनिर्भर बनाने के योगदान
के बारे में जानकारी देने वाले हैं।
" बोरोलीन" एक ऐसी एन्टीसेपटिक क्रीम है जिसका इस्तेमाल
हिंदुस्तान के तकरीबन हर घर में होता है। सामान्य घाव से लेकर बड़े से बड़ी चोट के
लिए " बोरोलीन" एक बेहद असरदार मरहम है। यदि आप ने इस क्रीम को इस्तेमाल
नहीं भी किया है तो इस बात से तो इन्कार ही नहीं होगा की आपने इसका नाम भी न सुना
हो। दरअसल " बोरोलीन" हमारे देश में पिछले 92 सालों से बेचा जा रहा सबसे पुराना उत्पाद है। " बोरोलीन"
का इतना पसंदीदा और प्रसिद्ध होने की सबसे बड़ी वजह यह है कि इतना लंबा समय बिताने के बाद भी इस की बनावट या गुणवत्ता
में रत्ती भर भी फर्क नहीं हुआ है।
" बोरोलीन" का इतिहास
बात बीसवीं सदी की है जब हमारा देश अंग्रेजों की गुलामी से आजाद होने
की जद्दोजहद कर रहा था। उस समय चल रहे आंदोलन के साथ देश में "स्वदेशी
आंदोलन" भी शुरू किया गया। लोगों ने विदेशी चीजों का बहिष्कार कर देसी चीजों
का इस्तेमाल करना शुरू किया।
ये आंदोलन की रुपरेखा को आप ऐसे देख सकते हैं कि जिस प्रकार कुछ समय
पहले हमारे देश में भी चाईनीज उत्पादों का बहिष्कार हुआ था। उस समय अंग्रेज
हिंदुस्तानी लोगों से कड़ी मजदूरी करवाकर सारा माल एक्स्पोर्ट कर विदेश से
प्रोडक्ट्स बना कर हमारे देश में उच्च दामों पर बेच देते थे। उस समय हमारे देश के
लोगों ने कई छोटी बड़ी कंपनियों की स्थापना की और उन्हीं में से एक व्यक्ति थे
गोंड मोहन दत्ता। इन्होंने ने ही हमारे देश में सबसे पहली एंटीसेप्टिक क्रीम बनाने
की शुरुआत की थी। गोंड मोहन दत्ता बंगाल के एक काॅस्मेटीक उत्पादों के व्यापारी थे
जो दुसरे देशों से प्रोडक्ट्स को लाकर देश में बेचते थे। उन्होंने इस आंदोलन में
अपना योगदान देते हुए हमारे देश को आर्थिक रूप से मजबूत बनाने का फैसला किया। उस
बाद उन्होंने साल 1929 में कोलकाता में जेडी फार्मास्युटिकल नामक कंपनी की स्थापना कर देश
की पहली एंटीसेप्टिक क्रीम बनाने का काम शुरू कर दिया, जो आज भी
करोड़ों हिंदुस्तानियों की पहली पसंद हैं।
इस क्रीम की बनावट में बोरिक एसिड, जिंक ऑक्साइड और
लेनोनिन आदि का इस्तेमाल होता है। जहां बोरो का मतलब बोरिक एसिड और लीन का अर्थ
लेनोनिन होता है। दत्ता जी का परिवार रात भर इस क्रीम को बनाता और वे सुबह बाजार
में इसे बेचते थे। धीरे धीरे यह स्वदेशी क्रीम फेमस हो गई और अंग्रेजों ने इसकी
बिक्री पर रोक लगाने का भी संपूर्ण प्रयास किया।
लेकिन वह अपनी इस मंशा में नाकाम हुए क्योंकि स्वदेशी आंदोलन के चलते
देशवासियों ने "बोरोलीन " का ज्यादातर स्वीकार किया था। "बोरोलीन " एक ऐसी क्रीम थी जो
सामान्य चोट से लेकर फटी एड़ियां और सन स्क्रीन के तौर पर भी बहुत ही कारगर थी। इस
से पहले हमारे देश में सिर्फ और सिर्फ विदेशी बनावटों का चलन था। "बोरोलीन
"ने शानदार प्रदर्शन से फ्रीडम फाइटर बन कर विदेशी उत्पादों की छुट्टी कर दी।
वैसे तो "बोरोलीन "ने पुरे ही
बंगाल में फेमस होकर अंग्रेजों को धूल चटाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी किंतु
राष्ट्रीय स्तर पर इस क्रीम की पहचान 15 August, 1947 को हुई। देश को
आजादी मिलने की खुशी में कंपनी ने भारतवासियों को यह क्रीम बतौर उपहार थी। एक तरह
से यह एक विज्ञापन था जिसने गोड मोहन दत्ता की
"बोरोलीन " को हिंदुस्तान के कोने कोने में फेमस कर दिया था।
कंपनी ने उस बाद देश में होने वाले धार्मिक एवं खेल से संबंधित कार्यक्रमों में
स्पोंसर करना भी शुरू कर दिया। साल 1980
में 60% तक हिस्सेदारी बंगाल की थी लेकिन
२००० तक बंगाल की हिस्सेदारी ३५% और बाकी अन्य हिस्सा देश के अन्य राज्यों का था।
हां, यह बात भी है कि
"बोरोलीन " के बाद अन्य उत्पादों ने भी मार्केट में एंट्री की
थी। अब जेडी फार्मास्युटिकल को मार्केट में अपना स्थान बरकरार रखने के लिए अन्य
उत्पादों को भी लाॅंच करना पड़ा। इस प्रकार कंपनी ने "बोरोलीन " के अलावा गर्मीयों के लिए
सूथोल, पेनोरोल, एलिन, रक्षा एवं नोप्ररिक्स आदि प्रोडक्ट्स को लाॅंच किया। कंपनी समय
बिताने के साथ और भी मजबूत बनती गई क्योंकि साल 2013 में जेडी फार्मास्युटिकल की नेट वर्थ 113 करोड के आसपास थी वहीं 2016 यह
बढ़कर 150 करोड़ हुआ और वहीं ये 2019 तक 190 करोड़ के लेवल को क्रोस कर चुका है। इस प्रोडक्ट के बोक्स पर छपा
हुआ हाथी कंपनी की स्थिरता और मजबूती का सूचक है।
इस प्रकार हमें इस बात का अंदाजा। होता है कि कंपनी ने अपनी गुणवत्ता
के वादे को बरकरार रखा है। साथ ही बोरोलीन की गुणवत्ता के कारण ही इसे देश भर से
सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाता है।